सेवा मे, दिनांक : - 3 सितम्बर, 2012.
श्रीमान अध्यक्ष,
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग
नई दिल्ली
विषय : - उत्तर प्रदेश के वाराणसी जनपद के नौ थानो के निष्प्रयोज्य भवन घोषित होने के बाद भी किया जा रहा प्रयोग के सम्बन्ध मे !
महोदय,
हम आपका ध्यान विषयक के सन्दर्भ मे आकृष्ट कराना चान्हुंगा, जनपद के नौ थानो मे कार्यरत पुलिसकर्मियो और फरियाद सुनाते लोंगो के सिर पर जान का खतरा मंडरा रहा है, ये "निष्प्रयोज्य भवन" कभी भी गिर सकती है !
विदित हो की 1851 व अज़ादी से पूर्व मे बने थाना भवनो को न रहने लायक स्थिति कई वर्षो पूर्व घोषित किया जा चुका है, जिसमे रोहनिया, लंका (1976), रामनगर, चेतगंज, कैण्ट, मडुवाडीह, चौक, मिर्जामुराद व फूलपुर थाने है शामिल है ! इसे पुलिस आधुनिकीकरण योजना मे भी शामिल कर लिया गया है, लेकिन लोक निर्माण विभाग और सम्बन्धित विभाग की खिचातानी से कभी भी जानलेवा घटना घट सकती है ! दो सालो से पुलिस विभाग कई बार फाइल भेज चुका है, लेकिन कोई सुनवाई नही हो रही है ! मामले मे हिला - हवाली की जा रही है !
संलग्नक : -
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=40&edition=2012-08-28&pageno=5#id=111748773972590496_40_2012-08-28 अत: आपके अनुरोध है की मामले मे त्वरित हस्तक्षेप करने की कृपा करे !
भवदीय
(डा0 लेनिन)
मानवाधिकार जन निगरानी समिति,
सा. 4/2ए., दौलतपुर, वराणसी,
उत्तर प्रदेश - भारत, 221002.
मो0न0- +91-9935599333.
ई-मेल -
lenin@pvchr.asia.
संलग्ंक : -
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=40&edition=2012-08-28&pageno=5#id=111748773972590496_40_2012-08-28 नौ थानों की फोर्स पर मंडरा रहा खतराविकास बागी वाराणसी : जनपद के नौ थानाध्यक्षों व उनके जवानों के सिर पर जान का खतरा मंडरा रहा है। यह डर उन्हें हमेशा सताता रहता है कि जिस छत के नीचे वे बैठकर कानून-व्यवस्था की कमान संभालते हैं और लोगों की फरियाद सुनते हैं वह कभी भी गिर सकती है। जी हां, 1851 में बने रोहनियां थाना समेत जनपद के 9 थाना भवनों को निष्प्रयोज्य (न रहने लायक) घोषित किया जा चुका है। रोहनियां के अलावा लंका, रामनगर, चेतगंज, कैंट, मंडुवाडीह, चौक, मिर्जामुराद व फूलपुर थाना भवनों को दो वर्ष पूर्व ही लाल झंडी दिखाई जा चुकी है। पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने बताया कि निष्प्रयोज्य थाना भवनों के स्थान पर नए भवन बनने हैं। पुलिस आधुनिकीकरण योजना में इसे शामिल भी कर लिया गया है लेकिन लोक निर्माण विभाग की लापरवाही के चलते मामला अटका है। लोक निर्माण को कई बार पत्र लिखा जा चुका है कि वे निष्प्रयोज्य थाना भवनों का क्षरण मूल्य नहीं निकाल रहे हैं। नियमानुसार निष्प्रयोज्य भवन का क्षरण मूल्य निकालने के बाद ही नए भवन का इस्टीमेट तैयार हो सकता है। बताया कि बहुत कोशिश के बाद गत दिनों विभाग ने मिर्जामुराद थाने का 72 हजार व फूलपुर थाना भवन का 1 लाख 22 हजार 360 रुपये मूल्य निकाला। शेष सात थाना भवन अब भी आकलन को बाकी हैं। इसके पीछे की वजह पूछने पर कहा निर्माण उन्हें ही करना है और भवन भी मजबूत बनाना है। ऐसे में उनकी दुविधा आप समझ सकते हैं। जनपद में कब कौन थाना भवन बना और आज के दिन में उनकी स्थिति रोहनियां (1851) : थाना प्रभारी कक्ष, शौचालय, मालगृह, जीपी स्टोर, प्रथम टाइप आवास, वरिष्ठ उपनिरीक्षक व हेड मुहर्रिर आवास अत्यंत जीर्ण-शीर्ण। दो बैरक छोड़कर पूरा थाना भवन कंडम। कैंट (1885) : दीवारों में दरार, जर्जर कार्यालय, विवेचना कक्ष, थानाध्यक्ष कक्ष, शौचालय, फुलवरिया कक्ष, आवास जर्जर। हवालात, महिला सेल की भी हालत खराब। चेतगंज (1902) : सुर्खी-चूना के मिश्रण से निर्मित भवन की छत में लगा गाटर-पटिया सड़ चुके हैं। छत से पानी टपक रहा है। बैरक, एसओ कार्यालय, मेस, उप निरीक्षक कक्ष की दशा खराब, मरम्मत योग्य नहीं। रामनगर (1932) : लखौरी ईट-पटिया से बना भवन कई जगह से टूट गया है। पानी का रिसाव होता है। थानाध्यक्ष आवास, शौचालय, बैरक टूटा-फूटा। लंका (1976) : छत व दीवारों में दरार पड़ गई है। भोजनालय, एसओ / एसआई आवास जीर्ण-शीर्ण। मंडुवाडीह (1929) : बंदीगृह, मालखाना, बैरक, आवास, एसओ कक्ष, शौचालय का प्लास्टर उखड़ गया है। छत से पानी टपकता है। मरम्मत योग्य नहीं। अधिक समय तक उपयोग नहीं किया जा सकता। चौक (1904) : सुर्खी-चूना से बने दो मंजिला भवन की अवधि समाप्त हो चुकी है। एसओ कक्ष, हवालात, कोठरी, भोजनालय, शौचालय की हालत खस्ता। फर्श व दीवारें उखड़ चुकी है। भवन का प्रयोग किया जाना सुरक्षित नहीं है। मिर्जामुराद (1939) : थाना भवन जर्जर हो चुका है। एसओ कक्ष से लेकर अन्य जवानों के कक्ष जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। छत से पानी टपकता है। भवन कार्य योग्य नहीं है। फूलपुर (1885) : फूलपुर थाना भवन अपनी अवधि पूरी कर चुका है। एसओ कक्ष, शौचालय, बैरक आदि की हालत बेहद खराब है।