From: Detention Watch <pvchr.adv@gmail.com>
Date: 2011/8/27
Subject: जेलों में धड़ाधड़ मौतें, शासन बेफिक्र - उत्तर प्रदेश !
To: Anil Kumar Parashar <jrlawnhrc@hub.nic.in>, akpnhrc@yahoo.com
Cc: pvchr.india@gmail.com
जांच रिपोर्टे बताती हैं कि एक ओर तो तमाम माननीय बेवजह अस्पतालों में पहुंच जाते हैं और दूसरी ओर गरीब बंदी इलाज के अभाव में एड़ियां रगड़ कर दम तोड़ देते हैं। इन रिपोर्टो से पता चलता है कि जेलों में अधिकतर मौतें ठीक उसी दिन हो जाती हैं जिस दिन बंदी को जिला-मंडलीय अस्पताल में भर्ती किया जाता है। इतना ही नहीं अक्सर बंदी जेल में ही मर जाता है। उसे मरी हालत में अस्पताल पहुंचा कर जेल प्रशासन चुप्पी साध लेता है।
कम से कम सेंट्रल जेल में बंद रहे मालवीयनगर, बाजारखाला (लखनऊ) के कैदी रवि प्रताप शर्मा की मौत की रिपोर्ट तो यही कहानी बयां कर रही है। रवि की मौत की मजिस्ट्रेटी जांच में जेल प्रशासन को सतर्कता न बरतने का दोषी बताया गया है लेकिन ताज्जुब यह कि इस मामले में तत्कालीन प्रधान बंदी रक्षक कमलेश कुमार, नंद किशोर व बंदी रक्षक प्रभु नारायण पांडेय के खिलाफ तो परिनिंदा दंड की कार्रवाई स्थानीय स्तर से हो गयी लेकिन जेलर आरसी श्रीवास्तव, डिप्टी जेलर दीपेंद्र यादव, नीरज श्रीवास्तव के खिलाफ सात साल बाद भी कार्रवाई नहीं हो सकी है। यह शासन स्तर से होनी है।
सेंट्रल जेल में दो वर्ष पूर्व हुई सैंतीस वर्षीय सजायाफ्ता मुजरिम मोहम्मद आसिफ की मौत की हाल ही में दाखिल न्यायिक जांच की रिपोर्ट हालांकि किसी को दोषी तो नहीं ठहराती लेकिन बंदियों के इलाज में देरी के मौत का सबब होने की ओर संकेत जरूर करती है। तत्कालीन जेलर एसएन द्विवेदी के बयान में यह बात आयी है कि बैरक में बंद अन्य कैदियों ने आसिफ की मौत के बाद नाराजगी के चलते बैरक बंद कर लिया था।
सेंट्रल जेल में ही हुई चकिया (चंदौली) के जहूर की मौत की मजिस्ट्रेटी जांच की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2000 रुपये न देने पर इलाज की व्यवस्था नहीं की गयी। इतना ही नहीं रुपये न दे पाने की बात कहने के बाद उसे एक इंजेक्शन लगाया गया जिसके बाद हिचकी आयी और वह मर गया। यह बात हत्या के जुर्म में साथ ही जेल में बंद रहे उसके भाई शकूर खां ने कही है। इसमें उसने जेलर पर मुंह न खोलने के लिए धमकी देने का भी आरोप लगाया लेकिन उसकी बातें अनसुनी कर दी गयीं। सेंट्रल जेल में बंद रहे देवरिया जिले के कैदी छबीला की जांच रिपोर्ट बताती है कि उसकी तबीयत 1 फरवरी 2010 को खराब हुई लेकिन उसे 4 फरवरी को पं. दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल ले जाया गया। वहां पहुंचते ही डॉक्टरों ने छबीला को मृत घोषित कर दिया।
जेलों में बढ़ती मौतों और जवाबदेही का सवाल छिड़ने पर अफसर एक-दूसरे के पाले में गेंद डाल देते हैं। डॉक्टरों की कमी और अक्सर गारद न मिलने से चिकित्सा प्रबंध ठीक नहीं हैं कह कर आफिसर पल्ला झाड. लेते है। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि जब सेंट्रल जेल में मात्र 1200 कैदी थे तब 3 डॉक्टर थे। अब कैदी 2400 से ज्यादा और डॉक्टर मात्र 1 है। इस कमी की भरपाई स्वास्थ्य विभाग के जिम्मे है लेकिन वह मौन है। जेल अफसर चिट्ठी लिखते हैं लेकिन महकमे की नींद नहीं टूटती। जेल कर्मियों को लेकर उठे सवालों पर वह कन्नी काट गये।
अत: महोदय से निवेदन है कि मामला मे त्वरित हस्क्षेप करते हुये मृतक कैदियो के परिजनो को मुआवजा प्रदान कराते हुये शासन - प्रशासन पर न्यायोचित कार्यवाही करने की कृपा करे !
जेलों में धड़ाधड़ मौतें, शासन बेफिक्र
-मजिस्ट्रेटी व न्यायिक जांचों में आ चुकी है लापरवाही की बात
-मृत्यु दर बढ़ने पर मानवाधिकार व बंदियों के झंडाबरदार भी चुप
वाराणसी, नगर संवाददाता : जेलों में धड़ाधड़ मौतें हो रही हैं, शासन बेफिक्र है। कैदियों की मौतों की मजिस्ट्रेटी व न्यायिक जांच की रिपोर्टे लापरवाही की पोल खोल चुकी हैं। जेल प्रशासन बंदी रक्षकों के सिर ठीकरा फोड़ निवृत्त हो जा रहा है। जेलों में मृत्यु दर बढ़ने पर मानवाधिकार व बंदियों के झंडाबरदार भी चुप्पी साधे पड़े हैं।
जांच रिपोर्टे बताती हैं कि एक ओर तो तमाम माननीय बेवजह अस्पतालों में पहुंच जाते हैं और दूसरी ओर गरीब बंदी इलाज के अभाव में एड़ियां रगड़ कर दम तोड़ देते हैं। इन रिपोर्टो से पता चलता है कि जेलों में अधिकतर मौतें ठीक उसी दिन हो जाती हैं जिस दिन बंदी को जिला-मंडलीय अस्पताल में भर्ती किया जाता है। इतना ही नहीं अक्सर बंदी जेल में ही मर जाता है। उसे मरी हालत में अस्पताल पहुंचा कर जेल प्रशासन चुप्पी साध लेता है।
कम से कम सेंट्रल जेल में बंद रहे मालवीयनगर, बाजारखाला (लखनऊ) के कैदी रवि प्रताप शर्मा की मौत की रिपोर्ट तो यही कहानी बयां कर रही है। रवि की मौत की मजिस्ट्रेटी जांच में जेल प्रशासन को सतर्कता न बरतने का दोषी बताया गया है लेकिन ताज्जुब यह कि इस मामले में तत्कालीन प्रधान बंदी रक्षक कमलेश कुमार, नंद किशोर व बंदी रक्षक प्रभु नारायण पांडेय के खिलाफ तो परिनिंदा दंड की कार्रवाई स्थानीय स्तर से हो गयी लेकिन जेलर आरसी श्रीवास्तव, डिप्टी जेलर दीपेंद्र यादव, नीरज श्रीवास्तव के खिलाफ सात साल बाद भी कार्रवाई नहीं हो सकी है। यह शासन स्तर से होनी है।
सेंट्रल जेल में दो वर्ष पूर्व हुई सैंतीस वर्षीय सजायाफ्ता मुजरिम मोहम्मद आसिफ की मौत की हाल ही में दाखिल न्यायिक जांच की रिपोर्ट हालांकि किसी को दोषी तो नहीं ठहराती लेकिन बंदियों के इलाज में देरी के मौत का सबब होने की ओर संकेत जरूर करती है। तत्कालीन जेलर एसएन द्विवेदी के बयान में यह बात आयी है कि बैरक में बंद अन्य कैदियों ने आसिफ की मौत के बाद नाराजगी के चलते बैरक बंद कर लिया था।
सेंट्रल जेल में ही हुई चकिया (चंदौली) के जहूर की मौत की मजिस्ट्रेटी जांच की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2000 रुपये न देने पर इलाज की व्यवस्था नहीं की गयी। इतना ही नहीं रुपये न दे पाने की बात कहने के बाद उसे एक इंजेक्शन लगाया गया जिसके बाद हिचकी आयी और वह मर गया। यह बात हत्या के जुर्म में साथ ही जेल में बंद रहे उसके भाई शकूर खां ने कही है। इसमें उसने जेलर पर मुंह न खोलने के लिए धमकी देने का भी आरोप लगाया लेकिन उसकी बातें अनसुनी कर दी गयीं। सेंट्रल जेल में बंद रहे देवरिया जिले के कैदी छबीला की जांच रिपोर्ट बताती है कि उसकी तबीयत 1 फरवरी 2010 को खराब हुई लेकिन उसे 4 फरवरी को पं. दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल ले जाया गया। वहां पहुंचते ही डॉक्टरों ने छबीला को मृत घोषित कर दिया।
क्या कहते हैं अफसर
जेलों में बढ़ती मौतों और जवाबदेही का सवाल छिड़ने पर अफसर एक-दूसरे के पाले में गेंद डाल देते हैं। डीआईजी जेल वीके जैन कहते हैं-डॉक्टरों की कमी और अक्सर गारद न मिलने से चिकित्सा प्रबंध ठीक नहीं हैं। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि जब सेंट्रल जेल में मात्र 1200 कैदी थे तब 3 डॉक्टर थे। अब कैदी 2400 से ज्यादा और डॉक्टर मात्र 1 है। इस कमी की भरपाई स्वास्थ्य विभाग के जिम्मे है लेकिन वह मौन है। जेल अफसर चिट्ठी लिखते हैं लेकिन महकमे की नींद नहीं टूटती। जेल कर्मियों को लेकर उठे सवालों पर वह कन्नी काट गये।
इनसेट
कितने बंदी मरे
वर्ष जिला जेल सेंट्रल जेल
2008 9 17
2009 2 13
2010 7 17
2011 3 12
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किन्हें मिली राहत
1 : पूर्व सांसद जवाहर व उनके भाई विजय जायसवाल अस्पताल में रहे 9 माह
2 : सुभाष ठाकुर पेशी पर आए और भर्ती हो गये बीएचयू में।
क्या रहा कोर्ट का रुख
1 : कोर्ट के सख्त रुख से सुभाष ठाकुर को बिना डिस्चार्ज कराये पुलिस ले भागी।
2 : कोर्ट जवाहर-विजय को भी तलब करता रहा लेकिन जेल-बीेएचयू के डॉक्टरों की रिपोर्टो ने रोका।
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